Monday, November 30, 2009

दिल ऐसा किसी ने मेरा तोडा ...



कहने को तो ..... नीला आसमान मेरे चारो तरफ़ लहरा रहा है । पर मेरे लिए एक मुठ्ठी भर भी नही बचा ।
चाहत तो एक मुठ्ठी भर आसमाँ की ही थी । वह भी मुअस्सर नही ।
सूरज की किरणे मुझ पर भी वैसे ही पड़ती है , जैसे दूसरो पर गिरती है । अफ्शोश !मुझमे गर्मी पैदा करने की
ताकत उसमे नही ।
कौन जानता ...मै वह अन्धकार बन गया हूँ , जिसपर उजाले का कोई असर नही ।



दिल ऐसा किसीने मेरा तोडा, बरबादी के तरफ ऐसा मोडा
एक भले मानुष को अमानुष बनाके छोडा
दिल ऐसा किसीने मेरा तोडा, बरबादी के तरफ ऐसा मोडा

सागर कितना मेरे पास है, मेरे जीवन में फिर भी प्यास है
है प्यास बढ़ी जीवन थोडा अमानुष बनाके छोडा
दिल ऐसा किसीने मेरा तोडा, बरबादी के तरफ ऐसा मोडा

कहते हैं यह दुनिया के रास्ते, कोई मंज़िल नहीं तेरे वास्ते
नाकामियों से नाता मेरा जोडा अमानुष बनाके छोडा
दिल ऐसा किसीने मेरा तोडा, बरबादी के तरफ ऐसा मोडा

डूबा सूरज फिर से निकले रहता नहीं है अँधेरा
मेरा सूरज ऐसा रूठा देखा न मैंने सवेरा
उजालों ने साथ मेरा छोडा, अमानुष बनाके छोडा
दिल ऐसा किसीने मेरा तोडा, बरबादी के तरफ ऐसा मोडा
एक भले मानुष को अमानुष बनाके छोडा
दिल ऐसा किसीने मेरा तोडा, बरबादी के तरफ ऐसा मोडा

....

Tuesday, November 10, 2009

एक छोटी सी आशा ...

अगर तूफ़ान में जिद है ... वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है ।
देख लेगे तुम्हारी जिद या मेरा नशा ... किसमे कितना ताकत है ।
तुम्हारी जिद से मेरा सितारा डूबने वाला नही । हम दमकते साए है ।
असर तो जरुर छोड़ेगे ।

.........ये गीत मुझे बेहद पसंद है ..... छोटी आशा ही सारे संसार में उजाला कर सकती है ।

Friday, July 10, 2009

Saturday, June 27, 2009

Jis Gali Mein Tera Ghar n ho baalma.......

सच प्रियतम की गली ही उसे स्वर्ग लगता है , जो प्यार में है । दूसरी गली तो काटने दौड़ती है । हमेशा नजरे उसी ओर उठती है।



Tuesday, June 23, 2009

Tuesday, May 12, 2009

अपना दिल तो आवारा ......

खुबसूरत गीत .... हेमंत दा की आवाज में .....
क्या मिठास है ....कालजयी रचना और संगीत ......
मन को मदहोश कर देते है .....स्कुल के दिनों की याद ताजा हो जाती है .....


Tuesday, May 5, 2009

खोया खोया चाँद ......

खोया खोया चाँद .....खुला आसमान ...आंखों में सारी रात जायेगी ।
एक खुबसूरत आवाज और वो भी रफी साहब की .....मन भरता ही नही क्या करे ।
देवानंद ने गाने को अमर बना दिया है ..... शरीर तो देखिये ..कितनी बेचैनी है ।
हाव भाव कमाल के है .....बड़ी ही खूबसूरती के साथ फिल्माया गया है यह गाना ।
प्रेमिका से बिछड़ने पर जो दर्द है उस दर्द को आवाज में रफी साहब ने और
देवानंद साहब ने परदे पर बखूबी उतारा है । आप भी देखिये .......


Sunday, May 3, 2009

न तुम हमें जानो न हम तुम्हे जाने .....

हेमंत दा की आवाज में जादू है ..मदहोश कर देता है । कई साल पहले इस गाने को सुना था , तब लगा था की किशोर दा की आवाज है । बाद में पता चला की ये आवाज हेमंत दा की है ।
प्रस्तुतीकरण भी तो देखिये जनाब देवानंद गाने के बोल शुरू करते है ..उस वक्त फ़िल्म की हिरोइन वहीदा रहमान सोई हुई रहती है । आवाज सुन जब वह जगती है तो आँखें अलसाई हुई जैसे गानों ने जबरदस्ती जगा दिया हो.... ..एकदम नेचुरल लगता है ।
नींद से जागने के बाद आवाज को ऐसे खोजती है जैसे नींद में चल रही हो । ब्लैक सारी में किसी खुबसूरत परी से कम नही लग रही और आँखें ..कुछ मत पूछिये केवल देखिये कहानी ख़ुद ब ख़ुद बयां हो जायेगी । यहाँ ब्लैक एंड ह्वाईट फ़िल्म में इतनी सुंदर दिखी है.....इतनी सुंदर तो रंगीन फिल्मों में भी नही दिखी ।
ये मौसम ये रात चुप है ...ये होठों की बात चुप है ..खामोशी सुनाने लगी ये दास्ताँ .....
तो फ़िर देर किस बात की है , खामोशी से इस गाने को सुना जाय .....






"Baat Ek Raat Ki" [1962] is an Indian Hindi film directed by Shankar Mukherjee. Starring Dev Anand and Waheeda Rehman. Music is by S D Burman.... Hemanta Kumar Mukhopadhyay is singer.

Saturday, May 2, 2009

किसी की मुस्कुराहटों ......

दिल को छू लेने वाला अंदाज..... इस गाने को सुन और देख मेरा गाँव याद आता है .....बड़ी बेफिक्री से घुमा करते थे ..धमा चौकडी मचाते हुए..... यहाँ को राज कपूर साहब ने तो कमाल ही कर दिया ..मुकेश साहब की आवाज इनपर इतनी सटीक बैठती है की गाने को देखने और सुनने से कभी मन ही नही भरता ...
क्या अंदाज है ...टोपी पहने झोला लटकाए हुए ..गाँव की गलियों में सड़क पर गीत गाते हुए.....भिखारी से भी मांग कर खाना ...वाकई निराला अंदाज ....हाथ नमस्कार करने के अंदाज जब कपूर साहब उठाते है ...तो चेहरा इतना भोला लगता है ...भाई गाँव के छोरे का दर्शन हो जाता है .......बार- बार देखता सुनता हूँ ..हर बार कोई न कोई अर्थ निकल ही आता है ..मन ही मन गीतकार को धन्यवाद देता हूँ ..काश !आज भी ऐसे गीत बनते ......

Friday, April 17, 2009

तू गंगा की मौज ....

tu ganga ki mauj main

यह गाना जीवन दर्शन है .....

Sunday, April 12, 2009

कही दूर जब दिन ढल जाए ......

कही दूर जब दिन ढल जाए , सांझ की दुल्हन बदन चुराए ... मेरे खयालो के आँगन में सपनों का दीप जलाए ॥
यह गाना दिल को छू लेता है । जिंदगी की हकीकत को बयां करता है । मुकेश साहब की आवाज में जो दर्द देखने को मिला है ... अन्यत्र दुर्लभ है । दर्द होते हुए भी मुस्कुराना है यही तो जिंदगी का नाम है ... आप भी मजा लीजिये इस दर्द भरी दास्ताँ का ......


Wednesday, April 1, 2009

यह गाना दिल को छू जाता है .... आप भी सुनिए , रफी साहब की आवाज में ....


Tuesday, March 24, 2009

सब कुछ सिखा हमने .....

राज कपूर और नूतन .....

ये जोड़ी भी फ़िल्म इंडस्ट्री में बेमिसाल थी ... इनको देखने का अलग मजा था ... कुछ सुनिए , कुछ देखिये और फ़िर सोचिये .......

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Thursday, March 19, 2009

आदमी जो कहता है ....

जिंदगी बड़ी अजीब है । इसमे आशा और निराशा दोनों है । जब दर्द जुबान पर आता है तो चहरे की रंगत बदल जाती है । थोड़े दिनों की जिंदगी है .... इसमे किसी को क्या सताना ... क्या तडपाना ? ऐसी सोच रखनी भी चाहिए पर कोई आपको इन सब खूबियों के बाद भी सताता है तो दर्द तो बाहर आएगा ही । प्रेम में धोखा खाना तो बड़ा ही दुखदाई है । गाना बड़ा प्यारा लगता है ... किशोर दा की आवाज अपने चरम पर है ।

यह गाना मैंने पहली बार हाई स्कूल में सुना था । रेडियो पर सुना था । तबसे इसको सुनने का कोई भी मौका नही छोड़ा । किशोर दा की आवाज अमिताभ बच्चन पर काफी सटीक बैठी है ......




Sunday, March 15, 2009

जीवन से भरी तेरी आँखें

सफर फ़िल्म का यह गाना मुझे किशोर दा द्बारा गाये हुए सभी गानों में कुछ विशेष लगता है । इसमे जीवन दर्शन झलकता है । इस गाने के बोल इतने सुंदर है की बार बार सुनने को मन करता है । तस्वीर बनाए क्या कोई क्या कोई लिखे तुझपे कविता ... ये लाइन दिल को झकझोर देता है .....१९७० में यह फ़िल्म आई थी जिसका यह गाना इन्दीवर ने लिखा है और संगीत कल्याण जी आनंद जी ने दिया है ।

जीवन से भरी तेरी आँखें
मजबूर करे जीने के लिए
जीने के लिए
सागर भी तरसते रहते हैं
तेरे रूप का रस पीने के लिए
पीने के लिए
जीवन से भरी तेरी आँखें

तस्वीर बनाए क्या कोई
क्या कोई लिखे तुझ पे कविता
रंगों छंदों में समायेगी- २
किस तरह से इतनी सुन्दरता,
सुन्दरता ...
एक धड़कन है तू दिल के लिए
एक जान है तू जीने के लिए
जीने के लिए
जीवन से भरी तेरी आँखें

मधुबन की सुगंध हैं साँसों में
बाहों में कमल की कोमलता
किरणों का तेज है, चहरे पे- २
हिरणों की है, तुझ में चंचलता,
चंचलता ...
आँचल का तेरे है तार बहुत
कोई चाक जिगर सीने के लिए
सीने के लिए
जीवन से भरी तेरी आँखें
मजबूर करे जीने के लिए
जीने के लिए
जीवन से भरी तेरी आँखें..

Thursday, March 12, 2009

माझी और किनारा

मुकेश की आवाज में मुझे ''माझी नैया ढूढे किनारा गीत काफी अच्छा लगता है । अभी सुन ही रहा हूँ। मेरी जिंदगी भी एक माझी की तरह ही है ... जो लगातार किनारे की तलास कर रहा है .....अफ्शोश अभी तक नही मिला ।

खोज अभी जारी है । आशा और निराशा की किरणों ने मन को बेचैन कर दिया है । छल-छल बहती जीवन-धारा ही अब मेरा संगीत है । किसी ना किसी की खोज में है...... ये जग सारा । एक लाइन है कभी ना कभी तो समझोगे तुम ये इशारा.... मांझी का इशारा ।

॥कभी ना कभी तो मिलन होगा, तुमसे हमारा ।। मांझी नैया ........ ढूंढें किनारा ।

Monday, March 9, 2009

रात हमारी तो.....

रतिया कारी कारी रतिया
रतिया अंधियारी रतिया
रात हमारी तो
चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद
आई वो अकेली है
चुप्पी की बिरह है
झींगुर का बाजे साथ

रात हमारी तो
चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद
आई वो अकेली है
संझा की बाती भी कोई बुझा दे आज
अंधेरे से जी भर के करनी हैं बातें आज
अँधेरा रूठा है
अँधेरा बैठा है
गुमसुम सा कोने मैं बैठा हैं
रात हमारी तो
चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद
आई वो अकेली हैं
संझा की बाती भी कोई बुझा दे आज
अंधेरे से जी भर के करनी हैं बातें आज

[अँधेरा पागल है
कितना घनेरा हैं
चुभता है, डसता है
फिर भी वो मेरा हैं] - २
उसकी ही गोदी में
सर रखके सोना हैं
उसकी ही बाहों में
चुपके से रोना है
आँखों से काजल बन
बहता अँधेरा आज
रात हमारी तो
चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद
आई वो अकेली है
संझा की बाती भी कोई बुझा दे आज
अंधेरे से जी भर के करनी हैं बातें आज
अँधेरा रूठा है
अँधेरा बैठा है
गुमसुम सा,
कोने में बैठा है

यह गाना मुझे काफी अच्छा लगता है .....अँधेरा अब बुरा नही लगता ....शान्ति मिलती है । दिन के भाग दौड़ के बाद अंधेरे शुकून मिलता है ।

Tuesday, March 3, 2009

गोरखपुर विश्वविद्यालय

The University of Gorakhpur is a teaching and residential-cum-affiliating University. Although the idea of residential University at Gorakhpur was first mooted by Dr. C.J. Chako, the then Principal of St. Andrews College, then under Agra University, who initiated post-graduate and undergraduate science teaching in his college, the idea got crystallized and took concrete shape by the untiring efforts of Late Pt. S.N.M. Tripathi. The proposal was accepted in principle by the first Chief Minister of U.P., Late Pt. Govind Ballabh Pant, but it was only in 1965 that the University came into existence by an act passed by the U.P. Legislature. It actually started functioning since September 1, 1957, when the faculties of Arts, Commerce, Law and Education were started. In the following year, 1958, the faculty of science came into being. Late Mahant Digvijay Nath also made valuable contribution in the formation of the University.

At one stage the federal jurisdiction of the University was spread over colleges in Gorakhpur and the adjoining erstwhile twelve districts with about 125 affiliated colleges. At present, with the establishment of new colleges and the creation of new districts, there are 123 colleges located in five districts of Gorakhpur Division.
In the beginning the University had its own teething troubles. But due to the zeal, untiring efforts and foresight of its founding fathers and the then faculty members, it has come of age having completed more than forty years of a most meaningful existence. It now has neat and attractive campus spread over an area of about 300 acres with well-planned teaching and residential campuses. In the beginning the University was housed in two buildings the Pant Block (inaugurated by late Pt. Pant) and the Majithia Block (named after Sir Surendra Singh Majithia, who made a significant donation to the building through his family trust). Several other buildings came up during the following decades : they include the Central Library, the Arts Block, the Administrative Block, the Law Faculty, a Student's Union building, a Gymnasium hall, a Health Centre, a Computer Centre and Research Buildings for Chemistry, Zoology, and Botany. Besides, there are separated Buildings for Commerce and Education Faculties and also for Home, Science, Geography, Psychology, Sociology, Hindi, Ancient History, Fine Arts and Music, Political Science and Adult Education. A huge building comprising several big rooms besides and imposing auditorium, referred to as Deeksha Bhavan, presently houses the separate girls' wing for the undergraduate classes along with its use as an examination centre. Two separate building housing a branch of Allahabad Bank and a sub-Post Office are also part of the University. Samajiki Manviki Bhawan - was built about seven years ago. Besides the general maintenance and repair work, and the general beautification of the campus on a large scale, some hectic construction activities are also currently going on in the University. Buildings of Department of Business Management and of Biotechnology have been constructed. Additional lecture halls have been added in the Arts Faculty Building.

Wednesday, February 18, 2009

कुछ प्रयास तो हुआ .....

चुनाव आयोग ने अक्जिट और ओपीनीयन पॉल से संबंधित नियम मे सभी प्रकार के मीडिया के साधनों को शामिल किया है. आयोग के मुताबिक, अगर एक फेज की वोटिंग है तो मतदान खत्म होने से 48 घंटे पहले ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल का प्रसारण व प्रकाशन नहीं हो सकेगा। अगर मतदान कई चरणों में और कई राज्यों में है तो पहले चरण का मतदान खत्म होने से 48 घंटे पहले से लेकर सभी चरणों व सभी राज्यों का मतदान खत्म होने तक ओपिनियन पोल व एग्जिट पोल के प्रकाशन व प्रसारण पर प्रतिबंध रहेगा। इस कदम से चुनाव प्रक्रिया को स्वक्छ बनाने मे मदद मिलेगी.

Sunday, February 15, 2009

खामोश सी है ....... जिंदगी .....



इन लमहों के दामन में
पाकीज़ा से रिश्ते हैं
कोई कलमा मोहब्बत का
दोहराते फरिश्ते हैं

खामोश सी है ज़मीन हैरान सा फलक़ है
इक नूर ही नूर सा अब आसमान तलक है
नग्मे ही नग्मे हैं जागती सोती फिज़ाओं में
हुस्न है सारी अदाओं में
इश्क़ है जैसे हवाओं में

कैसा ये इश्क़ है
कैसा ये ख्वाब है
कैसे जज़्बात का उमड़ा सैलाब है
दिन बदले रातें बदलीं, बातें बदलीं
जीने के अंदाज़ ही बदले हैं
इन लमहों के दामन में ...

समय ने ये क्या किया
बदल दी है काया
तुम्हें मैने पा लिया
मुझे तुमने पाया
मिले देखो ऍसे हैं हम
कि दो सुर हो जैसे मद्धम
कोई ज्यादा ना कोई कम
किसी आग में.. कि प्रेम आग में
जलते दोनो ही थे
तन भी है मन भी
मन भी है तन भी

मेरे ख्वाबों के इस गुलिस्ताँ में
तुमसे ही तो बहार छाई है
फूलों में रंग मेरे थे लेकिन
इनमें खुशबू तुम्हीं से आई है

क्यूँ है ये आरज़ू
क्यूँ है ये जुस्तज़ू
क्यूँ दिल बेचैन है
क्यूँ दिल बेताब है

दिन बदले रातें बदलीं, बातें बदलीं
जीने के अंदाज़ ही बदले हैं

इन लमहों के दामन में ....

नग्मे ही नग्मे हैं जागती सोती फिज़ाओं में...
इश्क़ है जैसे हवाओं में.............







तू मुस्कुरा ................

यही जीवन का मूल मंत्र है ................................


तू मुस्करा जहाँ भी है तू मुस्कुरा
तू धूप की तरह बदन को छू जरा
शरीर सी ये मुस्कुराहटें तेरी
बदन में सुनती हूँ मैं आहटें तेरी
लबों से आ के छू दे अपने लब जरा
शरीर सी.......आहटें तेरी

ऍसा होता है खयालों में अक्सर
तुझको सोचूँ तो महक जाती हूँ
मेरी रुह में बसी है तेरी खुशबू
तुझको छू लूँ तो बहक जाती हूँ

तेरी आँखों में, तेरी आँखों में
कोई तो जादू है तू मुस्करा
जहाँ भी है तू मुस्कुरा......
तू मुस्करा.......आहटें तेरी

तेज चलती है हवाओं की साँसें
मुझको बाहों में लपेट के छुपा ले
तेरी आँखों की हसीं नूरियों में
मैं बदन को बिछाऊँ तू सुला ले
तेरी आँखों में, तेरी आँखों में
कोई तो नशा है तू मुस्कुरा
तू मुस्करा.......आहटें तेरी ....

Tuesday, February 10, 2009

आलोक पुराणिक सत्यम कांड को प्रकाश में आए कुछ हफ्ते बीत चुके हैं, पर आम निवेशक अब तक यह बात सा
फ तौर पर समझ पाने में असफल है कि आखिर इसमें घोटाला क्या हुआ है। आम निवेशक ही नहीं, ऐसे मामलों में विशेषज्ञ कोटि की जानकारी रखने वालों को भी इस बारे में अब तक ज्यादा कुछ मालूम नहीं चल पाया है। सत्यम कांड से पहले हमारा देश ऐसे ही घपले-घोटाले वाला हर्षद मेहता प्रकरण देख चुका है। पर 1992 के हर्षद मेहता घोटाले पर कायदे की केस स्टडी, किताबें या शोध अभी तक उपलब्ध नहीं हैं। वित्तीय प्रबंधन के छात्रों को यह समझाना मुश्किल है कि उस घोटाले में कौन सी प्रक्रियागत, नीतिगत और प्रशासनिक चूकें हुई थीं। वैसी संस्थागत तैयारियां कहीं भी नहीं दिखाई पड़तीं, जिनसे आम निवेशक ऐसे मसलों को समझ पाए, जबकि इनमें ज्यादातर धन तो उसी का डूबता है। आज वैसे तो कई टीवी चैनल और वेबसाइटें हैं, जो आम निवेशकों को यह राय देती हैं कि फलाना शेयरों में निवेश से फायदा होगा। नुकसान हो जाए, तो फिर बताते हैं कि अब इन नए शेयरों में निवेश करो। लेकिन इस पर चर्चा आम तौर पर नहीं होती कि शेयर बाजार में निवेश के क्या जोखिम हैं और आखिर कोई शेयर कुछ ही दिनों में पांच सौ से दस रुपये का कैसे हो जाता है। दरअसल, इसमें किसी की दिलचस्पी भी नहीं है। एक अच्छी वित्तीय व्यवस्था की नींव में मजबूत वित्तीय साक्षरता की बड़ी भूमिका होती है। इसीलिए आज का सच यह है कि कॉरपोरेट गवर्नेंस पर बहसें करने और किसी कंपनी में स्वतंत्र निदेशकों के हाथ मजबूत करने की बात करने के बावजूद, जब तक आम निवेशक को अपने हित और अपने दायित्वों का पता नहीं होगा, तब तक सत्यम जैसे घोटालों का सिलसिला रोका नहीं जा सकता। किसी भी कंपनी में निदेशक मूलत: तीन तरह के होते हैं। सबसे ज्यादा और सबसे महत्वपूर्ण निदेशक प्रवर्तक समूह के होते हैं, यानी वे जिन्होंने कंपनी बनाई है। दूसरे निदेशक वे होते हैं, जो महत्वपूर्ण वित्तीय संस्थानों से आते हैं, जैसे एलआईसी, जीआईसी, यूटीआई वगैरह से। तीसरी श्रेणी में स्वतंत्र निदेशक होते हैं, जिनसे उम्मीद की जाती है कि वे स्वतंत्र रूप से और नि:स्वार्थ भाव से कंपनी के निदेशकों की कारगुजारियों पर नजर रखेंगे। पर सच यह है कि स्वतंत्र निदेशक किसी भी कंपनी में स्वतंत्र नहीं होते, हो भी नहीं सकते। जो भी इन स्वतंत्र निदेशकों को कंपनी में लेकर आता है, उनके प्रति इनकी यह अलिखित जिम्मेदारी बनती है कि वे उनकी कंपनी के लिए कड़े सवाल खड़े नहीं करेंगे। शर्त यही है कि आप हमें आगे भी निदेशक बनाते रहें। इस आपसी समझदारी के तहत कई कंपनियों में स्वतंत्र निदेशक बैठे हुए हैं। इसलिए कह सकते हैं कि देश में अभी कई सत्यम घोटालों का सामने आना बाकी है। नियमों के तहत सत्यम कंपनी में भी स्वतंत्र निदेशक थे। इनमें से एक शीर्ष विदेशी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। दूसरे केंद्र सरकार के कैबिनेट सेक्रेटरी के पद से रिटायर हुए थे। एक और टॉप इंडियन बिजनेस स्कूल के डीन थे। पर ये न तो सत्यम में कुछ भी गलत होते हुए देख पाए और न ही घोटालों को रोक पाए। क्यों? इस सवाल का जवाब यह है कि गतिविधियां ज्ञान से नहीं, स्वार्थ से संचालित होती हैं। स्वतंत्र निदेशक का किसी कंपनी में क्या स्वार्थ हो सकता है? विदेशी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साहब को कई करोड़ के प्रोजेक्ट सत्यम से मिले थे। यहां सवाल यह भी है कि कोई बड़ा जानकार अपना समय और ऊर्जा किसी कंपनी के खातों की जांच में क्यों लगाएगा? ऐसा तीन सूरतों में संभव है। एक, जब ऐसा करने की साफ तौर पर जवाबदेही हो। दूसरे, उसके वित्तीय हित ऐसी जांच से जुड़े हों। तीसरे, जब वह राष्ट्रीय सामाजिक हित चेतना के भावों से ओतप्रोत हो। तीसरी संभावना की बात फिलहाल नहीं की जा सकती। पहली स्थिति यानी किसी कंपनी के खातों की जांच-पड़ताल की जवाबदेही, स्वतंत्र निदेशकों की नहीं बनती। उनके वित्तीय हित किसी कंपनी से 'उचित सवाल नहीं पूछने पर' ही सध सकते हैं, पूछने पर नहीं। ऐसी सूरत में करोड़ों के निवेश आखिर छोड़े किसके भरोसे जाते हैं? इसका जवाब यह है कि प्रवर्तकों की भलमनसाहत के भरोसे। लेकिन अगर कोई प्रवर्तक राजू जैसा निकल जाए, तो फिर कुछ नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में क्या सेबी ऐक्ट और क्या कंपनी ऐक्ट- ये सब के सब धरे रह जाते हैं। प्रवर्तकों की ऐसी प्रवृत्ति पर रोक सिर्फ वे हजारों निवेशक और शेयरधारक ही लगा सकते हैं, जिन्हें बतौर शेयरधारक अपने अधिकारों का पता हो और जिन्हें शेयरों से जुड़ी जिम्मेदारियों का अहसास हो। जो कंपनी की सभा में खड़े होकर पूछ सकें कि मिस्टर राजू, आपके खिलाफ इनकम टैक्स के घपलों का मामला क्या है? एक कंपनी में लगे पब्लिक के पैसों को आप अपने बेटों की कंपनी में क्यों लिवाए जा रहे हैं? अभी तो स्थिति यह है कि दस से 15 प्रतिशत शेयर रख कर प्रवर्तक समूह मालिक समूह घोषित हो जाता है। तकनीकी तौर पर शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनी का कोई एक मालिक नहीं होता। जिसके पास दस शेयर भी हैं, वह भी उस कंपनी का आंशिक मालिक होता है। उसके अपने अधिकार हैं, वह अपनी शंकाओं के निवारण के लिए सवाल पूछ सकता है। पर मसला यह है कि ज्यादातर निवेशक यही समझते हैं कि कंपनी का मालिक कोई दस-बीस प्रतिशत शेयर रखने वाला राजू है। हमें क्या? बड़े संस्थागत निवेशक तब तक कुछ नहीं करते, जब तक शेयर भाव ठीकठाक चल रहे हों। उनकी चिंता तब शुरू होती है, जब शेयर डूबने लगते हैं। जरूरी यह है कि शेयर बाजार में सूचीबद्ध और पब्लिक से पैसा उगाहने वाली हर कंपनी के आंकड़ों और गतिविधियों पर सवाल उठाने के लिए निवेशक वैसे ही जागरूक हों, जैसे स्वस्थ लोकतंत्र के वोटर होते हैं। इसके लिए वित्तीय साक्षरता की मुहिम चलाई जानी चाहिए। इस मुहिम की अपेक्षा तो वैसे हर्षद मेहता घोटाले के बाद ही थी, पर अब सत्यम के घोटाले के बाद निश्चय ही चेत जाना चाहिए। रिजर्व बैंक, सेबी और कॉरपोरेट अफेयर्स मंत्रालय को इस काम में अहम भूमिका निभानी चाहिए।