Monday, March 9, 2009

रात हमारी तो.....

रतिया कारी कारी रतिया
रतिया अंधियारी रतिया
रात हमारी तो
चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद
आई वो अकेली है
चुप्पी की बिरह है
झींगुर का बाजे साथ

रात हमारी तो
चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद
आई वो अकेली है
संझा की बाती भी कोई बुझा दे आज
अंधेरे से जी भर के करनी हैं बातें आज
अँधेरा रूठा है
अँधेरा बैठा है
गुमसुम सा कोने मैं बैठा हैं
रात हमारी तो
चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद
आई वो अकेली हैं
संझा की बाती भी कोई बुझा दे आज
अंधेरे से जी भर के करनी हैं बातें आज

[अँधेरा पागल है
कितना घनेरा हैं
चुभता है, डसता है
फिर भी वो मेरा हैं] - २
उसकी ही गोदी में
सर रखके सोना हैं
उसकी ही बाहों में
चुपके से रोना है
आँखों से काजल बन
बहता अँधेरा आज
रात हमारी तो
चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद
आई वो अकेली है
संझा की बाती भी कोई बुझा दे आज
अंधेरे से जी भर के करनी हैं बातें आज
अँधेरा रूठा है
अँधेरा बैठा है
गुमसुम सा,
कोने में बैठा है

यह गाना मुझे काफी अच्छा लगता है .....अँधेरा अब बुरा नही लगता ....शान्ति मिलती है । दिन के भाग दौड़ के बाद अंधेरे शुकून मिलता है ।

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