Sunday, February 15, 2009

तू मुस्कुरा ................

यही जीवन का मूल मंत्र है ................................


तू मुस्करा जहाँ भी है तू मुस्कुरा
तू धूप की तरह बदन को छू जरा
शरीर सी ये मुस्कुराहटें तेरी
बदन में सुनती हूँ मैं आहटें तेरी
लबों से आ के छू दे अपने लब जरा
शरीर सी.......आहटें तेरी

ऍसा होता है खयालों में अक्सर
तुझको सोचूँ तो महक जाती हूँ
मेरी रुह में बसी है तेरी खुशबू
तुझको छू लूँ तो बहक जाती हूँ

तेरी आँखों में, तेरी आँखों में
कोई तो जादू है तू मुस्करा
जहाँ भी है तू मुस्कुरा......
तू मुस्करा.......आहटें तेरी

तेज चलती है हवाओं की साँसें
मुझको बाहों में लपेट के छुपा ले
तेरी आँखों की हसीं नूरियों में
मैं बदन को बिछाऊँ तू सुला ले
तेरी आँखों में, तेरी आँखों में
कोई तो नशा है तू मुस्कुरा
तू मुस्करा.......आहटें तेरी ....

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